03-02-05   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सेवा करते उपराम और बेहद द्वारा एवररेडी बन, बह्मा बाप समान सम्पन्न बनो

आज ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर अपने चारों ओर के कोटों में कोई और कोई में भी कोई बच्चों के भाग्य को देख हर्षित हो रहेहैं। इतना विशेष भाग्य और किसी को भी मिल नहीं सकता। हर एक बच्चे की विशेषता को देख हर्षित होते हैं। जिन बच्चों ने बापदादा से दिल से सम्बन्ध जोड़ा उन हर एक बच्चों में कोई न कोई विशेषता जरूर है। सबसे पहली विशेषता साधारण रूप में आयें हुए बाप को पहचान "मेरा बाबा" मान लिया। यह पहचान सबसे बडी विशेषता है। दिल से माना मेरा बाबा, बाप ने माना मेरा बच्चा। जो बड़े-बडे फिलासोफर साइंसदान धर्मात्मा नहीं पहचान सके, वह साधारण बच्चों ने पहचान अपना अधिकार ले लिया। कोई भी आकर इस सभा के बच्चों को देखे तो समझ नहीं सकेंगे कि इन भोली भोली माताओं ने, इन साधारण बच्चों ने इतने बडे बाप को पहचान लिया। तो यह विशेषता - पहचानना, बाप को पहचान अपना बनाना, यह आप कोटों में कोई बच्चों का भाग्य है। सभी बच्चों ने जो भी सम्मुख बैठे हैं वा दूर बैठे सन्मुख अनुभव कर रहे हैं, तो सभी बच्चों ने दिल से पहचान लिया है! पहचान लिया है कि पहचान रहे हैं? जिसने पहचान लिया है वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) पहचान लिया? अच्छा। तो बापदादा पहचानने के विशेषता की हर एक बच्चे को मुबारक दे रहे हैं। वाह भाग्यवान बच्चे वाह! पहचानने का तीसरा नेत्र प्राप्त कर लिया। बच्चों के दिल का गीत बापदादा सुनते रहते हैं, कौन सा गीत? पाना था वो पा लिया। बाप भी कहते ओ लाडले बच्चे, जो बाप से लेना था वो ले लिया। हर एक बच्चा अनेक रूहानी खज़ानों के बालक सो मालिक बन गयें।

तो आज बापदादा खज़ानों के मालिक बच्चों के खज़ाना का पोतामेल देख रहे थे। बाप ने खज़ाना तो सबको एक जैसा, एक जितना दिया है। किसको पदम, किसको लाख नहीं दिया है। लेकिन खज़ानों को जानना और प्राप्त करना, जीवन में समाना इसमें नम्बरवार हैं। बापदादा आजकल बार-बार भिन्न-भिन्न प्रकार से बच्चों को अटेंशन दिला रहे हैं - समय की समीपता को देख अपने आपको सूक्ष्म विशाल बुद्धि से चेक करो क्या मिला, क्या लिया और निरन्तर उन खज़ानों में पलते रहते है? चेकिंग बहुत आवश्यक है क्योकि माया वर्तमान समय भिन्न-भिन्न रॉयल प्रकार के अलबेलापन और रॉयल आलस्य के रूप में ट्रायल करती रहती है। इसलिए अपनी चेकिंग सदा करते चलो। इतने अटेंशन से, अलबेले रूप से चेकिंग नहीं - बुरा नहीं किया, दुख नहीं दिया. बुरी दृष्टि नहीं हुई, यह चेकिंग तो हुई लेकिन अच्छे ते अच्छा क्या किया? सदा आत्मिक दृष्टि नेचरल रही? या विस्मृति स्मृति का खेल किया? कितनो को शुभ भावना, शुभ कामना, दुआयें दी? ऐसे जमा का खाता कितना और कैसे रहा? क्योंकि अच्छी तरह से जानते हो कि जमा का खाता सिर्फ अभी कर सकते हैं। यह समय, फुल सीजन खाता जमा करने की है। फिर सारा समय जमा प्रमाण राज्य भाग्य और पूज्य देवी-देवता बनने का है। जमा कम तो राज्य भाग्य भी कम और पूज्य बनने में भी नम्बरवार होता है। जमा कम तो पूजा भी कम, विधिपूर्वक जमा नहीं तो पूजा भी विधिपूर्वक नहीं, कभी-कभी विधिपूर्वक है तो पूजा भी और पद भी कभी-कभी है। इसलिए बापदादा का हर एक बच्चे से अति प्यार है, तो बापदादा यही चाहते कि हर एक बच्चा सम्पन्न बने, समान बने। सेवा करो लेकिन सेवा में भी उपराम बेहद।

बापदादा ने देखा है मैजारिटी बच्चों की योंग अर्थात् याद की सबजेक्ट में रुचि वा अटेंशन कम होता है, सेवा में ज्यादा है। लेकिन बिना याद के सेवा में ज्यादा है तो उसमें हद आ जाती है। उपराम वृत्ति नहीं होती। नाम और मान का, पोजीशन का मिक्स हो जाता है। बेहद की वृत्ति कम हो जाती है। इसलिए बापदादा चाहते है कि कोटो में कोई, कोई में कोई मेरे बच्चे अभी से एवररेडी हो जायें, क्यों? कई सोचते है समय आने पर हो जायेंगे। लेकिन समय आपकी क्रियेंशन है, क्या क्रियेंशन को अपना शिक्षक बनायेंगे? दूसरी बात जानते हो कि बहुतकाल का हिसाब है, बहुतकाल की सम्पन्नता बहुतकाल की प्राप्ति कराती है। तो अभी समय की समीपता प्रमाण बहुतकाल का जमा होना आवश्यक है फिर उल्हना नहीं देना कि हमने तो समझा बहुतकाल में समय पडा है। अभी से बहुतकाल का अटेंशन रखो। समझा! अटेंशन प्लीज़।

बापदादा यही चाहते कि बच्चे में भी किमी भी एक सब्जेक्ट की कमी नहीं रह जाए। ब्रह्मा बाप से तो प्यार है ना! प्यार का रिटर्न तो देंगे ना! तो प्यार का रिटर्न है - अपनी कमी को चेक करो और रिटर्न दो, टर्न करो। अपने आपको टर्न करना, यह रिटर्न है। तो रिटर्न देने की हिम्मत है? हाथ तो उठा लेते हो, बहुत खुश कर लेते हो। हाथ देखकर तो बापदादा खुश हो जाते हैं, अभी दिल में पक्का-पक्का एक परसेन्ट भी कच्चा नहीं, पक्का व्रत लो - रिटर्न देना ही है। अपने आपको टर्न करना है।

अभी शिवरात्रि आ रही है ना! तो सभी बच्चों को बाप की जयन्ती सो अपनी जयन्ती मनाने का उमंग बहुत प्यार से आता है। अच्छे-अच्छे प्रोग्राम बना रहे हैं। सेवा के प्लैन तो बहुत अच्छे बनाते हो, बापदादा खुश होता है। लेकिन, लेकिन कहना अच्छा नहीं लगता है। जगत अम्बा माँ लेकिन शब्द को कहती थी, सिन्धी भाषा में, ले-किन, किन कहते हैं किचडे को। तो लेकिन कहना माना कुछ न कुछ किचडा लेना। तो लेकिन कहना अच्छा नहीं लगता है। कहना पडता है। जैसे और सेवा के प्लैन बनाये भी है और बनायेंगे भी लेकिन इस व्रत लेने का भी प्रोग्राम बनाना। रिटर्न देना ही है क्योंकि जब बापदादा या कोई पूछते हैं कैसे हैं? तो मैजारिटी का यही उत्तर आता है, हैं तो बहुत अच्छे लेकिन जितना बापदादा कहते हैं उतना नहीं। अभी यह उत्तर होना चाहिए जो बापदादा चाहते हैं वही है। नोट करो बापदादा क्या चाहता है, वह लिस्ट निकालो और चेक करो बापदादा यह चाहता है, वह है या नहीं है? दुनिया वाले आप पूर्वजो द्वारा मुक्ति चाहते हैं, चिल्ला रहे हैं, मुक्ति दो, मुक्ति दो। जब तक मैजारिटी बच्चे अपने पुराने संस्कार, जिसको आप नेचर कहते हो, नेचरल नहीं नेचर, उसमें कुछ भी थोडा रहा हुआ है. मुक्त नहीं हुए है तो सर्व आत्माओं को मुक्ति नहीं मिल सकती। तो बाप दादा कहते हैं - हे मुक्तिदाता के बच्चे मास्टर मुक्तिदाता अभी अपने को मुक्त करो तो सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का द्वार खुल जाए। सुनाया था ना - गेट की चाबी क्या है,  “बेहद का वैराग्य”। कार्य सब करो लेकिन जैसे भाषणों में कहते हो प्रवृत्ति वालों को कमल पुष्प समान बनो, ऐसे सब कुछ करते, कर्त्तापन से मुक्त, न्यारे, न साधनों के वश, न पोजीशन के। कुछ न कुछ मिल जाए यह पोजीशन नहीं आपोजीशन है माया की। न्यारे और बाप के प्यारे। मुश्किल है क्या, न्यारे और प्यारे बनना? जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। (किसी ने हाथ नहीं उठाया) किसको भी मुश्किल नहीं लगता है फिर तो शिवरात्रि तक सब सम्पन्न हो जायेंगे। जब मुश्किल नहीं है तो बनना ही है। ब्रह्मा बाप समान बनना ही है। संकल्प में भी, बोल में भी, सेवा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, सबमें ब्रह्मा बाप समान।

अच्छा जो समझते हैं, ब्रह्मा बाप और दादा, ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर, उससे मेरा बहुत-बहुत 100 परसेन्ट से भी ज्यादा प्यार है, वह हाथ उठाओ। खुश नहीं करना, सिर्फ अभी- अभी खुश नहीं करना। सभी ने उठाया है। टी.वी. में निकाल रहे हो ना। शिवरात्रि पर यह टी.वी. देखेंगे और हिसाब लेंगे। ठीक है! जरा भी समानता में अन्तर नहीं हो। प्यार के पीछे कुर्बान करना, क्या बडी बात है। दुनिया वाले तो अशुद्ध प्यार के पीछे जीवन भी देने के लिए तैयार हो जाते हैं। बापदादा तो सिर्फ कहते हैं, किचडा दे दो बस। अच्छी चीज नहीं दो, किचडा दे दो। कमज़ोरी, कमी क्या है? किचडा है ना! किचडा कुर्बान करना क्या बड़ी बात है! परिस्थिति समाप्त हो जाए, स्व-स्थिति श्रेष्ठ हो जाए। बताते तो यही हैं ना, क्या करें परिस्थिति ऐसी थी। तो हिलाने वाली परस्थिति का नाम ही नहीं हो, ऐसी स्व-स्थिति शक्तिशाली हो। समाप्ति का पर्दा खुले तो सब क्या दिखाई देवें? फरिश्ते चमक रहे हैं। सभी बच्चे चमकते हुए दिखाई दें। इसीलिए अभी पर्दा खुलना रुका हुआ है। दुनिया वाले चिल्ला रहे हैं, पर्दा खोलो, पर्दा खोलो। तो अपना प्लैन आप ही बनाओ। बना हुआ प्लैन देते हैं ना तो फिर कई बातें होती है। अपना प्लैन अपनी हिम्मत से बनाओ। दृढ़ता की चाबी लगाओ तो सफलता मिलनी ही है। दृढ संकल्प करते हो और बापदादा खुश होते हैं वाह बच्चे वाह! दृढ़ संकल्प किया लेकिन दृढ़ता में फिर थोड़ा- थोडा अलबेलापन मिक्स हो जाता है। इसीलिए सफलता भी कभी आधी, कभी पौनी परसेंटेज में हो जाती है। जैसे प्यार 100 परसेन्ट है वैसे पुरुषार्थ में सम्पन्नता, यह भी 100 परसेन्ट हो। ज्यादा भले हो, कम नहीं हो। पसन्द है? पसन्द है ना? शिवरात्रि पर जलवा दिखायेंगे ना! बनना ही है। हम नहीं बनेगे तो कौन बनेगा! यह निश्चय रखो, हम ही थे, हम ही है और फिर भी हम ही होंगे। यह निश्चय विजयी बना देगा। पर-दर्शन नहीं करना, अपने को ही देखना। कई बच्चे रूहरिहान करते हैं ना, कहते हैं बस इसको थोडा सा ठीक कर दो, फिर मै ठीक हो जाऊँगा। इसे थोडा बदली कर दो तो मैं भी बदली हो जाऊँगा लेकिन न वह बदलेगा न आप बदलेंगे। स्वयं को बदलेंगे तो वह भी बदल जायेंगा। कोई भी आधार नहीं रखो, यह हो तो यह हो। मुझे करना ही है। अच्छा - शिवरात्रि अभी आनी है ना!

अच्छा, जो पहले बारी आये हैं - वह हाथ उठाओ। तो जो पहली बारी आये हैं उन्हों के लिए विशेष बापदादा कहते हैं कि ऐसे समय पर आये हो जब समय बहुत कम बचा है लेकिन पुरुषार्थ इतना तीव्र करो जो लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट नम्बर आ जाओ क्योंकि अभी चेयर्स गेम चल रही है। अभी किसकी जीत है, वह आउट नहीं हुआ है। लेट तो आये हो लेकिन फास्ट चलने से पहुँच जायेंगे। सिर्फ अपने आपको अमृतवेले अमर भव का वरदान याद दिलाना। अच्छा - सभी कोई दूर से कोई नजदीक से आये हैं। बापदादा कहते हैं भले पधारे अपने घर में। संगठन अच्छा लगता है। टी वी में देखते हो ना, सभा कुल होने से कितना अच्छा लगता है। अच्छा। तो एवररेडी? एवररेडी का पाठ पढ़ेंगे ना। अच्छा।

सेवा का टर्न – इंदौर जोन:- इन्दौर वाले उठो, हाथ हिलाओ। बहुत आये हैं। बहुत अच्छा। चांस लेना यह भी बहुत श्रेष्ठ तकदीर बनाना है। तकदीरवान हो जो चांस मिला भी है और लिया भी है। बापदादा तो सदा कहते हैं कि यह 15 - 20 दिन हर जोन को जो गोल्डन चांस मिलता है, यह बहुत-बहुत स्वमान, स्व-स्थिति और पुण्य का खाता जमा करने का चांस है। तो सभी ने उमंग- उत्साह से सेवा की है, उसकी मुबारक है। अच्छा है इन्दौर तो सदा अन्तर्मुख रहता होगा, इन-डोर है ना, डोर के अन्दर रहने वाले तो अन्तर्मुखी हो गये ना। तो अन्तर्मुखी सदा सुखी होता है। तो इन्दौर निवासियों को नेचरल वरदान हो गया - अन्तर्मुखी सदा सुखी। तो कमाई जमा की? ज्यादा में ज्यादा की या थोड़ी की? सबने बहुत कमाई की' अच्छा। एक ब्राह्मण को खिलाते हैं, सेवा करते हैं उसका भी पुण्य मानते हैं। आपने तो कितने ब्राह्मणों की सेवा की। तो आपके पुण्य का खाता बहुत बड़ा जमा हो गया। और सच्चे ब्राह्मणों की सेवा की। तो पुण्य का खाता भी इतना महान हो गया। अच्छा है। उमंग-उत्साह से स्व-उन्नति कर रहे हैं, करते रहना और आगे उड़ते रहना। अच्छा।

मेडीकल विंग:- अच्छा किया है, इन्होंने अपने विंग में विशेष धारणा बहुत अच्छी रखी है। दया, दुआ एवम दवा। दया, दुआ, दवा तो कितना अच्छा रखा है। तो चेक करना - दया भाव रहा? तंग होके तो सेवा नहीं की? कोई ऐसा पेशेन्ट आ जाए तंग तो नहीं होते! दुआ भी दो, दवा भी दो तो सदा के लिए पेशेन्ट नहीं, पेशेन्स हो जाए। पेशेन्स में आ जाए। देखो, जो डाक्टर्स होते हैं ना उनको नेक्स्ट  गॉड कहते हैं, तो आपकी सेवा का कितना महत्त्व है, टाइटिल मिला है नेक्स्ट गाड। इसीलिए लक्ष्य अच्छा रखा है दया और दुआ। दवाई देना तो कार्य है ही। जो भी पेशेन्ट आवे, रोता आवे और मुस्कराते जावे तब कहेंगे दया और दुआ की। चिल्लाता आवे और आराम से जायें। अच्छा है। मेंडिकल विंग का तो सबूत है, डाक्टर बैठा है ना (डा. सतीष गुप्ता) मेडिकल विंग ने सबूत दिया है, गवर्मेंट तक आवाज पहुँचा है। बापदादा चाहता है ऐसे हर एक विंग का गवर्मेंट तक आवाज जाये। देखो, प्रेजीडेंट ने भी कहा कि ब्रह्माकुमारियाँ बिना खर्चे के हार्ट ठीक कर देती है। तो यह भी आवाज फैला ना। गवर्मेंट तक आवाज जरूर जाना चाहिए। गवर्मेंट तक जाने का मतलब है कि वह आवाज ऑटोमेटिक फैलेगा। जैसे पहले आप लोग क्या करते थे, कोई न कोई नेता को बुला लेते थे और टी वी में निकलता था। अभी तो टीवी आपकी हो गई है लेकिन पहले बुलाते थे तो नाम होवे। टी वी वाले आवे, आवाज फैले। अभी इससे ऊपर चले गयें है, अभी टीवी. वाले आपको और ही पूछने के लिए आते हैं, आप क्या करते हो, कैसे करते हो। तो फर्क हुआ ना। तो गवर्मेंट तक पहुँचने से आवाज फैल जाता है। तो अच्छा कर रहे हैं, मुबारक हो।

स्पोर्ट विंग:- अच्छा। (मम्मा, बाबा, दीदी, दादी का फोटो बैडमिंटन खेलते हुए दिखा रहे हैं) चित्र दिखा रहे हैं। अच्छा सभी को दिखाओ। अच्छा है - कोई न कोई ऐसी आत्माओं को सन्देश दो जो वह माइक बनके आवाज फैलायें। प्रोग्राम बनाया है ना अच्छा है। बापदादा चाहते हैं जैसे स्पोर्ट में जो गाये हुए नामीग्रामी हैं, वह माइक बने। इतना पुरुषार्थ करो। हर एक वर्ग का जो सबसे विशेष गाया हुआ है, वह आपका माइक बने। आपको माइक बनने की आवश्यकता नहीं पडेगी। हर एक वर्ग वाला यह कोशिश करो भिन्न-भिन्न सबजेक्ट होती हैं, उसमें से कोई नामीग्रामी ढूंढो उसको अनुभव कराओ और वह अपना अनुभव सुनाये। आपको खर्चा भी नहीं करना पड़ेगा, मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। हर वर्ग को ऐसे करना चाहिए। साधारण की तो कर ही रहे हो। यह मेगा प्रोग्राम कर रहे हो तो जनरल आ रहे हैं लेकिन अभी थोडा क्वालिटी की सेवा करो। हर एक वर्ग ऐसा एक दो माइक तैयार करो क्योंकि अभी तो काफी समय हो गया है, वर्ग वाले सेवा कर रहे हैं, परिचय तो अभी काफी हो गया है। अभी एक एक कोई ऐसा तैयार करो, चलो रेग्युलर स्टूडेंट नहीं हो लेकिन माइक तो बने क्योंकि ऐसी आत्मायें रेग्युलर स्टूडेंट मुश्किल बनते हैं, अनुभव तो सुनावें। तो इस वर्ष यह करना। हर एक वर्ग कोशिश करो और फिर उन्हों का संगठन हो जाए, छोटा संगठन, बडा नहीं। तो एक दो को देख करके भी उमंग आता है। ठीक है ना! तो पहले कौन करेगा? आप करेंगे। अच्छा – इन एडवांस मुबारक हो।

सिक्यूरिटी विंग:- (बैनर दिखा रहे है) लक्ष्य तो अच्छा रखा है, इन्होंने लक्ष्य रखा है, “सुरक्षा, सेवा, सम्पूर्ण समर्पण”। सम्पूर्ण समर्पण हो गया तो फिर तो सम्पूर्ण हो ही जायेंगे। अच्छा लक्ष्य रखा है। अपने को समर्पण करना अर्थात् निमित्त और निर्माण बनना। निमित्त और निर्माण बनने से सफलता तो है ही। अच्छा है, आप लोगों को तो अन्त तक सेवा करनी पडेगी। अन्त के समय आपकी सेवा ज्यादा होगी। अच्छा है हर एक विंग लक्ष्य को दोहराते रहना। लिखा तो सभी ने अच्छा है, लक्ष्य को लक्षण बनाके ही छोडना है। आज तो लथ्य दिखाया है, अभी लक्षण देखेंगे। सभी विंग ने अच्छा लक्ष्य रखा है। अच्छा - कोई मिलेट्री वाले तैयार कर रहे हो? सिक्यूरिटी के हर ग्रूप में कनेक्शन रखो। चाहे देश के लिए, चाहे आत्माओं के लिए जो सिक्युरेटी डिपार्टमेंट है उन सबकी सेवा हो क्योंकि यह समय पर बहुत काम में आने हैं। जैसा समय नाजुक होगा तो आपको उन्हों की मदद से आवाज फैलाने में बहुत अच्छा होगा। कनेक्शन सबसे रखो। जो भी शाखायें है, उन्हों से भी सम्पर्क रखो। सेवाधारी बहुत होते है ना तो समय पर सेवाधारी काम में आवे। अच्छा है फिर भी बापदादा देखते हैं हर वर्ग कोशिश अच्छी कर रहे हैं। अच्छा, मुबारक हो।

स्पार्क ग्रुप:- (मूल्यनिष्ठ समाज की रचना करने का लक्ष्य रख अभियान निकालने का सोचा है, जिसमें हर जोन हर विंग इसी के अन्तर्गत सेवा करे, साथ- साथ अन्तिम समय की तैयारियाँ तथा संस्कार परिवर्तन के विषय पर गहन अनुभूति कराने का लक्ष्य रखा है)

बहुत अच्छा, घर घर में आवाज फैल जायेगा। और ऐसा ग्रुप तैयार करो जो गवर्मेंट तक भी आवाज जाये, यह अभियान करायेंगे तो आवाज जायेगा। अच्छा सोचा है। संख्या तो बहुत है। सब रिजल्ट निकालना, फिर बापदादा और मुबारक देंगे। अच्छा है यह उमंग-उत्साह, अपने पुरुषार्थ में भी उमंग-उत्साह बढ़ायेगा। सिर्फ सेवा में ही नहीं, साथ में अपने पुरुषार्थ में भी उमंग-उत्साह बढता जाए, सेवा भी बढती जाए। बाकी अच्छा किया है, मुबारक हो।

यूथ ग्रुप भी सेवा करके आयें हैं:- सेवा में खुशी का मेवा खाया क्योंकि सेवा का मेवा मिलता है खुशी, उमंग-उत्साह। तो सिर्फ सेवा की, सेवा के साथ मेवा खाया, कितनी खुशी रही? खुश रहे और खुशी बाँटी यह मेवा खाया और मेवा खिलाया। ऐसे ही आगे बढते चलो। अच्छा किया है । मेहनत अच्छी की है। मेहनत की मुबारक और आगे बढने की भी मुबारक हो। अच्छा।

डबल विदेशी:- कितने देशों से हैं? (35 देशों से) अच्छा है डबल विदेशियों से मधुबन सज जाता है। चाहे ज्ञान सरोवर में रहो, चाहे नीचे रहो लेकिन आप मधुबन के डबल श्रृंगार हो। सब आपको देखकर खुश होते हैं। और बापदादा ने सुनाया कि जब स्थापना हुई तो बापदादा का एक टाइटल नहीं था, और जब विदेश सेवा हुई है तो प्रैक्टिकल में वह टाइटल आ गया। वह कौन-सा टाइटल? विश्व कल्याणकारी। तो अभी विश्व में कोने-कोने में सेवाकेन्द्र हैं। हर खण्ड में अनेक सेवाकेन्द्र हैं। एक यू.के., यूरोप में कितने होंगे, आस्ट्रेलिया में कितने होंगे? तो विश्व कल्याणकारी का टाइटल डबल फॉरिन सेवा से सिद्ध हुआ और आप जानते हो ना - बापदादा को एक डबल फरिनर्स की विशेषता बहुत अच्छी लगती है। जानते हो? सच्चाई सफाई। बता देते हैं। हिम्मत थोडी- थोड़ी भले कम हो लेकिन बता देते हैं । छिपाने की आदत नहीं है। तो सच्चाई बाप को प्रिय है। सत्यता, महानता को प्राप्त कराने वाली होती है। बहुत अच्छा किया है, जिस देश से निकले उसी देश के सेवाधारी बन गये। नहीं तो भारतवासी बच्चों को कितनी भाषायें सीखनी पडती। पहले तो यह पढ़ाई पढनी पडती लेकिन आप आये सेवाधारी बन गये। सेवा का सबूत भी लाते हो इसकी बहुत-बहुत-बहुत मुबारक। और सभी ओ. के. रहने वाले, ओ .के. कभी नहीं भूलना। अच्छे हैं, अच्छे ते अच्छे रहना ही है। विदेश को नम्बरवन लेना है। विन करके वन लेना है। ठीक है ना! विन करने वाले वन नम्बर लेने वाले। ठीक है? ऐसे हैं? टू नम्बर नहीं ना! वन। विन और वन। अच्छे हैं, सभी को प्यारे लगते हैं। आपको सब देखने चाहते हैं। बापदादा ने तो देख लिया, अभी घूम जाओ जो सब आपको देखें। देखों, दर्शनीय मूर्त बन गये। (जयन्ती बहन से) यह ठीक है! अच्छा है। अच्छा।

जिब्राल्टर सबसे छोटा बच्चा है, बहुत अच्छा निमित्त बन आगे जा रहे हैं:-

बहुत अच्छा। सबसे नम्बरवन जाना। अच्छा। सभी अपनी- अपनी सेवा कर रहे हैं, करते रहेंगे, सबको उडाते रहेंगे।

मधुबन निवासियों से:- मधुबन वाले हाथ उठाओ। बहुत है। मधुबन वाले होस्ट हैं और तो गेस्ट होकर आते हैं चले जाते हैं लेकिन मधुबन वाले होस्ट हैं। नियरेस्ट भी हैं, डियरेस्ट भी हैं। मधुबन वालों को देखकर सब खुश होते हैं ना। किसी भी स्थान पर मधुबन वाले जाते हैं तो किस नजर से देखते हैं। वाह मधुबन से आये हैं। क्योंकि मधुबन नाम सुनने से मधुबन का बाबा याद आ जाता है। इसलिए मधुबन वालों का महत्व है। है महत्व? खुश होते हो ना! ऐसा प्रेमपूर्वक पालना का स्थान कोटों में कोई को ही मिला है। सब चाहते हैं मधुबन में ही रह जाए, रह सकते हैं क्या। आप रह रहे हो। तो अच्छा है। मधुबन वाले भूलते नहीं हैं, समझते हैं हमारे को पूछा नहीं लेकिन बापदादा सदा दिल में पूछते हैं। पहले मधुबन वाले। मधुबन वाले नहीं हों तो आयेंगे कहाँ! सेवा के निमित्त तो है ना! सेवाधारी कितने भी मिले, फिर भी फाउण्डेशन तो मधुबन वाले हैं। तो जो ऊपर ज्ञान सरोवर में, पाण्डव भवन में है, उन सबको भी बापदादा दिल की दुआयें और यादप्यार दे रहे हैं। यहाँ जो टोली देते हैं वह ऊपर मधुबन में मिलती है? तो मधुबन वालों को टोली भी मिलती, बोली भी मिलती। दोनो मिलती है। अच्छा।

ग्लोबल हॉस्पिटल वालों से:- सभी हॉस्पिटल वाले ठीक है क्योंकि हॉस्पिटल का भी विशेष पार्ट है ना। आते हैं नीचे। अच्छा थोड़े आते हैं। हॉस्पिटल वाले भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। देखो आईवेल में तो फिर भी हॉस्पिटल ही काम में आती है ना। और जब से हॉस्पिटल खुली है तब से सबकी नजर में यह आया है कि ब्रह्माकुमारियाँ सिर्फ ज्ञान नहीं देती, लेकिन समय पर मदद भी करती है, सोशल सेवा भी करती है। तो हॉस्पिटल के बाद आबू में यह वायुमण्डल बदली हो गया। पहले जिस नजर से देखते थे, अभी उस नजर से नहीं देखते हैं। अभी सहयोग की नजर से देखते हैं। ज्ञान माने या नहीं माने लेकिन सहयोग की नज़र से देखते हैं तो हॉस्पिटल वालों ने सेवा की ना। अच्छा है।

अच्छा - आज की बात याद रही? सम्पन्न बनना ही है, कुछ भी हो जाए, सम्पन्न बनना ही है। यह धुन लग जाए, सम्पन्न बनना है, समान बनना है। अच्छा।

चारों ओर के कोटों में कोई, कोई में भी कोई भाग्यवान, भगवान के बच्चे श्रेष्ठ आत्मायें, सदा तीब्र पुकपार्थ द्वारा जो सोचा वह किया, श्रेष्ठ सोचना, श्रेष्ठ करना, लक्ष्य और लक्षण को समान बनाना, ऐसे विशेष आत्माओं को सदा बहुतकाल के पुरुषार्थ द्वारा राज्य भाग्य और पूज्य बनने बाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के स्नेह का रिटर्न अपने को टर्न करने वाले नम्बरबन, विन करने वाले भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादीजी से:- आपका नाम ही सेवा कर रहा है। दादी, दादी कहके ही सेवा हो रही है। अच्छा सभी सहयोगी और स्नेही नम्बरवन हैं। स्नेही भी हैं, राजयोगी भी हैं। ग्रूप अच्छा है।

(रतनमोहिनी दादी कल रीवा (म.प्र) के मिनी मेगा प्रोग्राम में जा रही हैं) सेवा तो बहुत अच्छी चल रही है। अच्छा है उमंग-उत्साह से करते हैं, रेसपान्स भी मिलता है, अच्छा है सबको याद देना।

जयन्ती बहन से:- प्रक्रितिजीत हो गई ना। प्रकृति तो नटखट है ही। लास्ट जन्म की है ना। इसलिए नटखट तो करती है लेकिन प्रकृति जीत होके उड़ते चलो, बापदादा की और परिवार की भी दुआयें बहुत है। तो दुआयें भी दवाई का काम कर रही है।

डा. हंसा रावल से:- सेवा में बहुत अच्छा फल मिलता है। प्रत्यक्षफल मिलता है खुशी, समीपता। तो यह फल लेने वाले, होशियार हो।

ओम शान्ति।